तारापुर के उद्योग गुजरात भागने को मजबूर: 40% ग्रीन कवर बना रासायनिक उद्योगों की मुश्किल – Secretary of TIMA, S.R. Gupta

पालघर (विकास सिंह): महाराष्ट्र के तारापुर MIDC में स्थित रासायनिक इकाइयाँ अब तेजी से गुजरात का रुख कर रही हैं। वजह है पर्यावरणीय नियमों के तहत फैक्ट्री परिसर में 40% हरित क्षेत्र (ग्रीन कवर) अनिवार्य करना, जो 2006 की EIA अधिसूचना के तहत लागू किया गया है। करीब 25-30 साल पुरानी इन इकाइयों के लिए, सीमित भूमि पर विस्तार और अपग्रेडेशन अब लगभग असंभव हो चुका है।

वहीं गुजरात में फैक्ट्रियों को यह छूट है कि वे ग्रीन कवर की भरपाई फैक्ट्री परिसर के बाहर – सरकारी, निजी या वन भूमि पर भी कर सकती हैं। इससे साफ-सफाई के मानकों को पूरा करना आसान होता है। सायक्खा और दहेज जैसे औद्योगिक क्षेत्रों में भूमि की उपलब्धता, प्रोत्साहन और तेजी से मंजूरी मिलने के कारण फैक्ट्रियाँ गुजरात जा रही हैं।

तारापुर इंडस्ट्रियल मैन्युफैक्चरर्स असोसिएशन (TIMA) के सचिव एस.आर. गुप्ता के अनुसार, “अब तक 6-7 कंपनियाँ अपना संचालन गुजरात ले जा चुकी हैं और 30-40 कंपनियाँ प्रक्रिया में हैं। इनमें से कई सायक्खा में यूनिट सेट कर चुकी हैं और लगभग 40% वर्कफोर्स भी शिफ्ट हो चुका है।”

तारापुर की फैक्ट्रियाँ आमतौर पर 800–1000 वर्गमीटर के भूखंडों पर बनी हैं, और अधिकतर ने FSI की सीमा पहले ही पूरी कर ली है। आंतरिक ढाँचा – जैसे सड़कें, सुरक्षा ज़ोन और स्टोरेज – पहले से ही जगह घेरे हुए हैं, जिससे हरित क्षेत्र बनाना असंभव हो जाता है।

नई उत्पादन इकाई, क्षमता विस्तार या तकनीकी उन्नयन की कोशिश में भी कंपनियों को 40% ग्रीन कवर और महंगे अपग्रेडेशन जैसे:

CETP से ट्रीटेड एफ्लुएंट इस्तेमाल के लिए NOC

₹5 से ₹9 करोड़ की लागत वाले ZLD प्लांट की स्थापना

जैसी शर्तें पूरी करनी होती हैं, जो खासतौर पर छोटे व मंझोले उद्योगों पर भारी पड़ती हैं। तारापुर MIDC की कुल 612 इकाइयों में से फिलहाल केवल 450 ही सक्रिय हैं।

उद्योग संगठनों ने महाराष्ट्र सरकार से अपील की है कि वह गुजरात की तरह ही लचीला मॉडल अपनाए। 5 जून 2024 को गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (GPCB) ने एक परिपत्र जारी कर ग्रीन कवर की पूर्ति फैक्ट्री परिसर से बाहर करने की अनुमति दी है।

साथ ही गुजरात इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन (GIDC) सस्ती दरों पर ज़मीन उपलब्ध करवा रही है और मंजूरी प्रक्रिया को सरल बना रही है।

तारापुर की स्थिति बताती है कि अगर महाराष्ट्र ने समय रहते उद्योगों के अनुकूल और व्यावहारिक नीतियाँ नहीं अपनाईं, तो और भी रासायनिक इकाइयाँ गुजरात का रुख कर सकती हैं। उद्योगों का मानना है कि विकास और पर्यावरणीय ज़िम्मेदारी साथ-साथ चल सकती है, ज़रूरत है बस संतुलन और समझ की।

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